EN اردو
आँखों में नए रंग सजाने नहीं उतरे | शाही शायरी
aankhon mein nae rang sajaane nahin utre

ग़ज़ल

आँखों में नए रंग सजाने नहीं उतरे

गिरिजा व्यास

;

आँखों में नए रंग सजाने नहीं उतरे
इक उम्र हुई ख़्वाब सुहाने नहीं उतरे

आकाश पे उड़ते रहे पानी के परिंदे
खेतों की मिरे प्यास बुझाने नहीं उतरे

हर मौज थी बेचैन बहकने को कभी से
ख़ुद आप ही दरिया में नहाने नहीं उतरे

बे-नूर हैं चेहरे यहाँ मायूस है हर दिल
उम्मीद की किरनों के ख़ज़ाने नहीं उतरे

वा'दा किया किस तरह वफ़ा आप ने इस बार
क्या ज़ेहन की वादी में बहाने नहीं उतरे