आँखों में ख़्वाब रख दिए ता'बीर छीन ली
उस ने ख़िताब बख़्श के जागीर छीन ली
ग़म ये नहीं कि बख़्त ने बरबाद कर दिया
ग़म है तो ये कि ख़्वाहिश-ए-ता'मीर छीन ली
दस्तार-ए-मस्लहत तो यूँ भी सर पे बोझ थी
अच्छा किया कि तुम ने ये तौक़ीर छीन ली
ये किस की बद-दुआ' की है तासीर या-ख़ुदा
जिस ने मिरी दुआओं से तासीर छीन ली
क़द्र-ओ-क़ज़ा का ज़िक्र कुछ इस तरह से किया
वाइ'ज़ ने नोक-ए-नाख़ुन-ए-तदबीर छीन ली
शोहरत मिली थी जुरअत-ए-तक़रीर से जिसे
शोहरत ने उस से जुरअत-ए-तक़रीर छीन ली
बुत बन गया तो उस की नमी ख़त्म हो गई
भक्तों ने उस की ख़ाक से इक्सीर छीन ली
अंदेशा-ए-इताब से यार और डर गए
क़ातिल से हम ने बढ़ के जो शमशीर छीन ली
बे-नुत्क़ थी तो कहती थी क्या क्या न दास्ताँ
गोयाई ने तो हैरत-ए-तस्वीर छीन ली
रहने लगा है वो बड़ा चुप चुप सा इन दिनों
'अरशद' से किस ने शोख़ी-ए-तक़रीर छीन ली
ग़ज़ल
आँखों में ख़्वाब रख दिए ता'बीर छीन ली
अरशद जमाल हश्मी