EN اردو
आँखों में जो बसा था वो काजल कहाँ गया | शाही शायरी
aankhon mein jo basa tha wo kajal kahan gaya

ग़ज़ल

आँखों में जो बसा था वो काजल कहाँ गया

बानो बी

;

आँखों में जो बसा था वो काजल कहाँ गया
था ज़ब्त जिस के दम से वो बादल कहाँ गया

हम जिस के साथ शौक़ से निकले थे सैर को
वो हम-सफ़र कहाँ है वो जंगल कहाँ गया

करता था शहर में जो मोहब्बत से गुफ़्तुगू
मा'लूम है किसी को वो पागल कहाँ गया

मौजें भी उस के पास उठीं नज़्म-ओ-ज़ब्त से
साहिल की जान था जो वो दीबल कहाँ गया

फैली हुई थी जिस के तक़द्दुस की रौशनी
आँखें तलाश में हैं वो आँचल कहाँ गया

'बानो' जो ग़म मिला मुझे क़िस्मत से अब वही
ले कर किसी की याद-ए-मुसलसल कहाँ गया