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आँखों में इक ख़्वाब है उस को यहीं सजाऊँगा | शाही शायरी
aankhon mein ek KHwab hai usko yahin sajaunga

ग़ज़ल

आँखों में इक ख़्वाब है उस को यहीं सजाऊँगा

उबैद सिद्दीक़ी

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आँखों में इक ख़्वाब है उस को यहीं सजाऊँगा
थोड़ी ज़मीं मिली तो इक दिन बाग़ लगाऊँगा

शहर जो तुम ये देख रहे हो इस में कई हैं शहर
मेरे साथ ज़रा निकलो तो सैर कराऊँगा

मेरे लिए ये दीवार-ओ-दर जैसे हैं अच्छे हैं
इस घर की आराइश कर के किसे दिखाऊँगा

सारी दुनिया देख रही है ख़ुशियों के अम्बार
इतनी दौलत मत दे मुझ को कहाँ छुपाऊँगा

ये जो अंधेरा फैल रहा है जिस्म-ओ-जाँ के बीच
और घनेरा हो जाए तो दिया जलाऊँगा