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आँखों में है पर आँख ने देखा नहीं अभी | शाही शायरी
aankhon mein hai par aankh ne dekha nahin abhi

ग़ज़ल

आँखों में है पर आँख ने देखा नहीं अभी

शाहिद शैदाई

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आँखों में है पर आँख ने देखा नहीं अभी
वो बुत जिसे कि मैं ने तराशा नहीं अभी

लफ़्ज़ों के पत्थरों में सनम बे-शुमार हैं
मेरे ही पास सोच का तेशा नहीं अभी

सदियों से नक़्श है जो तसव्वुर पे शाहकार
काग़ज़ पे उस का अक्स उतारा नहीं अभी

बरसों से मेरे सर पे है टुकड़ा इक अब्र का
जल-बुझ चुका है जिस्म वो बरसा नहीं अभी

जीने से भर चुका है दिल-ए-ज़ार क्या करूँ
मरने की आरज़ू-ओ-तमन्ना नहीं अभी

मानिंद-ए-मुल्क-ए-रोम लुटी घर की सल्तनत
यारों ये सानेहा मुझे भूला नहीं अभी

'शाहिद' निगार ख़ाना-ए-सद-रंग है जहाँ
फिर भी वो नक़्श आँख से उतरा नहीं अभी