आँखों में है कैसा पानी बंद है क्यूँ आवाज़
अपने दिल से पूछो जानाँ मेरी चुप का राज़
उस के ज़ख़्म को सहना रहना उस में ही महसूर
उस के ज़ुल्म पे हँस कर कहना तेरी उम्र दराज़
तेरी मर्ज़ी ख़ुशियों के या छेड़ ग़मों के राग
तू मेरी सुर-ताल का मालिक मैं हूँ तेरा साज़
दिल की हर धड़कन का मौजिब दीद शुनीद तिरी
सीने में जलती साँसों का तू ही एक जवाज़
और सी और हुआ है साजन ज़ीस्त का हर मफ़्हूम
और सी और हुई है मेरी सोचों की परवाज़
तुझ बिन कौन बनेगा ख़ाली आँखें गुंग सदा
तुझ बिन जान करेगा 'ताहिर' किस से राज़ नियाज़
ग़ज़ल
आँखों में है कैसा पानी बंद है क्यूँ आवाज़
ताहिर अदीम