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आँखों की नदी सूख गई फिर भी हरा है | शाही शायरी
aankhon ki nadi sukh gai phir bhi hara hai

ग़ज़ल

आँखों की नदी सूख गई फिर भी हरा है

असग़र गोरखपुरी

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आँखों की नदी सूख गई फिर भी हरा है
वो दर्द का पौदा जो मिरे दिल में उगा है

जाँ दे के भी चाहूँ तो उसे पा न सकूँ मैं
वो चाँद का टुकड़ा जो दरीचे में जड़ा है

सैलाब हैं चेहरों के तो आवाज़ के दरिया
ये शहर-ए-तमन्ना तो नहीं दश्त-ए-सदा है

'असग़र' ये सफ़र शौक़ का अब कैसे कटेगा
जो हम ने तराशा था वो बुत टूट गया है