EN اردو
आँखें किस का खोज लगाती रहती हैं | शाही शायरी
aankhen kis ka khoj lagati rahti hain

ग़ज़ल

आँखें किस का खोज लगाती रहती हैं

नज़ीर क़ैसर

;

आँखें किस का खोज लगाती रहती हैं
शक्लें अपना आप छुपाती रहती हैं

आने वाले दिनों की धुँदली तस्वीरें
गए दिनों के ख़्वाब दिखाती रहती हैं

मौसम के रूदाद रक़म करने के लिए
शाख़ें अपने हाथ कटाती रहती हैं

मिट्टी क्यूँ रंगों को ज़ाहिर करती है
ख़ुशबूएँ क्यूँ ख़ाक उड़ाती रहती हैं

कौन हवाएँ हैं जो लौह-ए-आलम पर
आँखें चेहरा हाथ बनाती रहती हैं

तन्हाई में ख़ामोशी की आवाज़ें
मुझ को मेरा नाम बताती रहती हैं

सारी रात गली के ख़ाली नुक्कड़ पर
तेज़ हवाएँ लैम्प हिलाती रहती हैं