आँख तुम्हारी मस्त भी है और मस्ती का पैमाना भी
एक छलकते साग़र में मय भी है मय-ख़ाना भी
बे-ख़ुदी-ए-दिल का क्या कहना सब कुछ है और कुछ भी नहीं
हस्ती से मानूस भी हूँ हस्ती से बेगाना भी
हुस्न ने तेरे दुनिया में कैसी आग लगा दी है
बर्क़ भी शोअ'ला बरपा है रक़्स में है परवाना भी
वुसअत-ए-वहशत तंग हुई बिगड़ा घर दीवानों का
नज्द के इक सौदाई ने लूट लिया वीराना भी
आज मोहब्बत रुस्वा है हाथों से होशयारों के
इश्क़ की पहली दुनिया में था कोई दीवाना भी
दिल की दुनिया हिलती है रोको अपनी नज़रों को
काफ़िर लूटे लेती हैं आज तजल्ली-ख़ाना भी
गर्दिश मस्त निगाहों की आख़िर वज्द-अंगेज़ हुई
चक्कर में 'साग़र' भी है दौर में है पैमाना भी
ग़ज़ल
आँख तुम्हारी मस्त भी है और मस्ती का पैमाना भी
साग़र निज़ामी