आँख से आँख मिला बात बनाता क्यूँ है
तू अगर मुझ से ख़फ़ा है तो छुपाता क्यूँ है
ग़ैर लगता है न अपनों की तरह मिलता है
तू ज़माने की तरह मुझ को सताता क्यूँ है
वक़्त के साथ ही हालात बदल जाते हैं
ये हक़ीक़त है मगर मुझ को सुनाता क्यूँ है
एक मुद्दत से जहाँ क़ाफ़िले गुज़रे ही नहीं
ऐसी राहों पे चराग़ों को जलाता क्यूँ है

ग़ज़ल
आँख से आँख मिला बात बनाता क्यूँ है
सईद राही