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आँख में परतव-ए-महताब सलामत रह जाए | शाही शायरी
aankh mein partaw-e-mahtab salamat rah jae

ग़ज़ल

आँख में परतव-ए-महताब सलामत रह जाए

जलील ’आली’

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आँख में परतव-ए-महताब सलामत रह जाए
कोई सूरत हो कि इक ख़्वाब सलामत रह जाए

रोज़ डहे जाए ये हारा तन ओ जाँ का लेकिन
ढेर में इक दिल-ए-बे-ताब सलामत रह जाए

वो किसी ख़ैर ख़ज़ाने की ख़बर देता है
जो सफ़ीना पस-ए-सैलाब सलामत रह जाए

दिल किसी मौज-ए-जुनूँ में जो लहू से लिख दे
ऐसी तहरीर सर-ए-आब सलामत रह जाए

प्यार वो पेड़ है सौ बार उखाड़ो दिल से
फिर भी सीने में कोई दाब सलामत रह जाए

लाख वो शौक़-सहीफ़ों को जला लें 'आली'
राख में एक न इक बाब सलामत रह जाए