आँख में अश्क लिए ख़ाक लिए दामन में
एक दीवाना नज़र आता है कब से बन में
मेरे घर के भी दर-ओ-बाम कभी जागेंगे
धूप निकलेगी कभी तो मिरे भी आँगन में
कहिए आईना-ए-सद-फ़स्ल-ए-बहाराँ तुझ को
कितने फूलों की महक है तिरे पैराहन में
शब-ए-तारीक मिरा रास्ता क्या रोकेगी
मिरे आँचल में सितारे हैं सहर दामन में
किन शहीदों के लहू के ये फ़रोज़ाँ हैं चराग़
रौशनी सी जो है ज़िंदाँ के हर इक रौज़न में
अहद-ए-रफ़्ता की तमन्ना का फ़ुसूँ ज़िंदा है
दिल-ए-नाकाम अभी तक तिरी हर धड़कन में
हमें मंज़ूर नहीं अगली रवायात-ए-जुनूँ
बा-ख़िरद हो गई 'गुलनार' दिवाना-पन में
ग़ज़ल
आँख में अश्क लिए ख़ाक लिए दामन में
गुलनार आफ़रीन