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आँख है इक कटोरा पानी का | शाही शायरी
aankh hai ek kaTora pani ka

ग़ज़ल

आँख है इक कटोरा पानी का

सलमान सरवत

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आँख है इक कटोरा पानी का
और ये हासिल है ज़िंदगानी का

राएगाँ कर गया मुझे आख़िर
ख़ौफ़ ऐसा था राएगानी का

चल निकलता है सिलसिला अक्सर
ख़ुश-गुमानी से बद-गुमानी का

दर्द बोता हूँ ज़ख़्म खिलते हैं
है बहुत शौक़ बाग़-बानी का

क्या ठिकाना ग़म-ओ-ख़ुशी का हो
दिल इलाक़ा है ला-मकानी का

जा के दरिया में फेंक आया हूँ
ये क्या है तिरी निशानी का

जिस का अंजाम ही नहीं कोई
मैं हूँ किरदार उस कहानी का

मुद्दआ' नज़्म हो नहीं पाया
शे'र धोका है तर्जुमानी का