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आँख बे-क़ाबू है दुनिया की तरह | शाही शायरी
aankh be-qabu hai duniya ki tarah

ग़ज़ल

आँख बे-क़ाबू है दुनिया की तरह

जमील यूसुफ़

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आँख बे-क़ाबू है दुनिया की तरह
दिल है पहलू में तमन्ना की तरह

कोई आवाज़ कोई गूँज नहीं
वक़्त चुप-चाप है सहरा की तरह

तू है इक फैलती बढ़ती ख़ुश्बू
मैं हूँ इक शोला-ए-तन्हा की तरह

तू मिरी राह में क्यूँ हाइल है
एक उमडे हुए दरिया की तरह

मुझ को मालूम नहीं था ऐ दोस्त
तू भी बेगाना है दुनिया की तरह

दूर उफ़ुक़-पार है शब पिछले-पहर
कोई उभरा रुख़-ए-ज़ेबा की तरह

शहर में चाँदनी बन कर उतरा
छा गया नश्शा-ए-सहबा की तरह

बस तिरे रंग-ए-हया की मानिंद
हू-ब-हू तेरे सरापा की तरह

अब कहाँ पाऊँगा मैं नक़्श-ए-'जमील'
ढूँढता फिरता हूँ दरिया की तरह