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आँख बे-ख़्वाब हुई है कैसी | शाही शायरी
aankh be-KHwab hui hai kaisi

ग़ज़ल

आँख बे-ख़्वाब हुई है कैसी

अासिफ़ जमाल

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आँख बे-ख़्वाब हुई है कैसी
ये हवा अब के चली है कैसी

तू मिरी याद में रोता तो नहीं
ये हवाओं में नमी है कैसी

साया है और कशीदा कितना
धूप है और कड़ी है कैसी

कैसा सोया है मुक़द्दर अपना
और ज़मीं घूम रही है कैसी

रस्म-ए-दुनिया है जिसे जाना है
हम पे उफ़्ताद पड़ी है कैसी

गुंग हैं ज़िंदा-दिलान-ए-लाहौर
रस्म-ए-पुर्सिश भी उठी है कैसी