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आने दो अपने पास मुझ को | शाही शायरी
aane do apne pas mujhko

ग़ज़ल

आने दो अपने पास मुझ को

मीर मोहम्मदी बेदार

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आने दो अपने पास मुझ को
करना है कुछ इल्तिमास मुझ को

तेरे ये जौर कब सहूँ मैं
गर इश्क़ का हो न पास मुझ को

दो तिफ़्ल-मिज़ाज शीशा-दिल में
किस तरह न हो हिरास मुझ को

लगता है न घर में दिल न बाहर
किस ने ये किया उदास मुझ को

क्या हाल कहूँ कि देख उस को
रहते ही नहीं हवास मुझ को

ऐ निकहत-ए-गुल परी ही रह तू
आना है उसी के पास मुझ को

मुँह फेरा भी न उस तरफ़ से
टुक होने दे रू-शनास मुझ को

उठ जाऊँगा एक दिन ख़फ़ा हो
यहाँ तक न करो उदास मुझ को

गर हैं यही जौर उस के 'बेदार'
बचने की नहीं है आस मुझ को