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आँधियाँ उट्ठीं फ़ज़ाएँ दूर तक कजला गईं | शाही शायरी
aandhiyan uTThin fazaen dur tak kajla gain

ग़ज़ल

आँधियाँ उट्ठीं फ़ज़ाएँ दूर तक कजला गईं

ज़हीर काश्मीरी

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आँधियाँ उट्ठीं फ़ज़ाएँ दूर तक कजला गईं
इत्तिफ़ाक़न दो चराग़ों की लवें टकरा गईं

आह ये महकी हुई शामें ये लोगों के हुजूम
दिल को कुछ बीती हुई तन्हाइयाँ याद आ गईं

इस फ़ज़ा में सरसराती हैं हज़ारों बिजलियाँ
इस फ़ज़ा में कैसी कैसी सूरतें सँवला गईं

ऐ ख़िज़ाँ वालो! ख़िज़ाँ वालो! कोई सोचो इलाज
ये बहारें पाँव में ज़ंजीर सी पहना गईं

फिर किसी ने छेड़ दी उज़्र-ए-जहाँ की दास्ताँ
दिल पे जैसे भीगी भीगी बदलियाँ सी छा गईं