आँधी में भी चराग़ मगन है सबा के साथ
लगता हे साज़-बाज़ हुई है हवा के साथ
लब पर ख़ुदा का नाम हो दिल में वतन का दर्द
निकले बदन से रूह मिरी इस अदा के साथ
उन को बहुत ग़ुरूर था अपनी जफ़ाओं पर
हम भी वहीं अड़े रहे अपनी वफ़ा के साथ
नज़रें झुका के सामने मेरे खड़ा है वो
शर्मिंदगी की अपने बदन पर क़बा के साथ
हर शख़्स रश्क करता है फिर ऐसी ज़ात पर
मर कर भी जिस के रब्त हो क़ाएम ख़ुदा के साथ
आग़ाज़ भी उसी की ज़ियारत के साथ हो
हो भी सफ़र तमाम तो माँ की दुआ के साथ
एहसान था या हुक्म की तामील थी 'सबीन'
हम बी क़दम क़दम चले उस की रज़ा के साथ
ग़ज़ल
आँधी में भी चराग़ मगन है सबा के साथ
ग़ौसिया ख़ान सबीन