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आँचल जो ढलकता है उन का कभी शानों से | शाही शायरी
aanchal jo Dhalakta hai un ka kabhi shanon se

ग़ज़ल

आँचल जो ढलकता है उन का कभी शानों से

नाज़ लाइलपूरी

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आँचल जो ढलकता है उन का कभी शानों से
पायल की सदा आ कर टकराती है कानों से

अपनी ही हलाकत का बाइ'स हुए जाते हैं
जो तीर निकलते हैं आज अपनी कमानों से

हम ने रह-ए-उल्फ़त में आ कर यही सीखा है
मंज़िल का पता लेना क़दमों के निशानों से

इक बार भी जो सुनना हम को न गवारा था
सौ बार सुना हम ने दुनिया की ज़बानों से

जिस ने कभी दुनिया की पर्वा ही नहीं की थी
वो 'नाज़' से मिलता है अब लाख बहानों से