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आना जाना है तो क़ामत से तुम आओ जाओ | शाही शायरी
aana jaana hai to qamat se tum aao jao

ग़ज़ल

आना जाना है तो क़ामत से तुम आओ जाओ

रफ़ी रज़ा

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आना जाना है तो क़ामत से तुम आओ जाओ
दर-ए-इज़हार-ए-मुरव्वत से तुम आओ जाओ

वो तहय्युर जो तुम्हें ले के यहाँ आया था
उस तहय्युर की विसातत से तुम आओ जाओ

हम किसी सम्त बगूलों को नहीं रोकते हैं
गर्मी-ए-ज़ौक़ शरारत से तुम आओ जाओ

कफ़ उड़ाने पे भी पाबंदी नहीं है कोई
हाँ मगर थोड़ी नफ़ासत से तुम आओ जाओ

हमें उम्मीद-ए-बलाग़त तो नहीं है तुम से
बस ज़रा थोड़ी बुलूग़त से तुम आओ जाओ

किस ने रोका है सर-ए-राह-ए-मोहब्बत तुम को
तुम्हें नफ़रत है तो नफ़रत से तुम आओ जाओ

तुम कि तिफ़्लान-ए-अदब साथ लगाए हुए हो
किसी मन्क़ूल शरीअत से तुम आओ जाओ

हम ने अशआर का दरवाज़ा खुला रक्खा है
जब भी जी चाहे सहूलत से तुम आओ जाओ