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आन रखता है अजब यार का लड़ कर चलना | शाही शायरी
aan rakhta hai ajab yar ka laD kar chalna

ग़ज़ल

आन रखता है अजब यार का लड़ कर चलना

नज़ीर अकबराबादी

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आन रखता है अजब यार का लड़ कर चलना
हर क़दम नाज़ के ग़ुस्से में अकड़ कर चलना

जितने बन बन के निकलते हैं सनम नाम-ए-ख़ुदा
सब में भाता है मुझे उस का बिगड़ कर चलना

ना-तवानी का भला हो जो हुआ मुझ को नसीब
उस की दीवार की ईंटों को रगड़ कर चलना

उस की काकुल है बुरी मान कहा ऐ अफ़ई
देखियो उस से तू कांधा न रगड़ कर चलना

चलते चलते न ख़लिश कर फ़लक-ए-दूँ से 'नज़ीर'
फ़ाएदा क्या है कमीने से झगड़ कर चलना