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आमिर-ए-अक़्ल से 'शहज़ाद' बग़ावत कर लें | शाही शायरी
aamir-e-aql se shahzad baghawat kar len

ग़ज़ल

आमिर-ए-अक़्ल से 'शहज़ाद' बग़ावत कर लें

फ़रहत शहज़ाद

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आमिर-ए-अक़्ल से 'शहज़ाद' बग़ावत कर लें
आओ उस शख़्स से इक़रार-ए-मोहब्बत कर लें

कल न-जाने कि किसे वक़्त कहाँ ले जाए
आज पल-भर ही सही ख़्वाब हक़ीक़त कर लें

उस को तोहमत से बचाना है हर इक क़िस्मत पर
हँसते रहना ही चलो आज से आदत कर लें

कौन मंज़िल के लिए लुत्फ़-ए-सफ़र को खोए
चलते रहने से ही तज्दीद-ए-रिफ़ाक़त कर लें

हम ने सब दीप बुझा डाले हैं इमशब ताकि
साथ जो चल न सकें तर्क-ए-मोहब्बत कर लें