आमिर-ए-अक़्ल से 'शहज़ाद' बग़ावत कर लें
आओ उस शख़्स से इक़रार-ए-मोहब्बत कर लें
कल न-जाने कि किसे वक़्त कहाँ ले जाए
आज पल-भर ही सही ख़्वाब हक़ीक़त कर लें
उस को तोहमत से बचाना है हर इक क़िस्मत पर
हँसते रहना ही चलो आज से आदत कर लें
कौन मंज़िल के लिए लुत्फ़-ए-सफ़र को खोए
चलते रहने से ही तज्दीद-ए-रिफ़ाक़त कर लें
हम ने सब दीप बुझा डाले हैं इमशब ताकि
साथ जो चल न सकें तर्क-ए-मोहब्बत कर लें
ग़ज़ल
आमिर-ए-अक़्ल से 'शहज़ाद' बग़ावत कर लें
फ़रहत शहज़ाद