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आमाज-गाह-ए-तीर-ए-सितम कौन हम कि आप | शाही शायरी
aamaj-gah-e-tir-e-sitam kaun hum ki aap

ग़ज़ल

आमाज-गाह-ए-तीर-ए-सितम कौन हम कि आप

नूह नारवी

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आमाज-गाह-ए-तीर-ए-सितम कौन हम कि आप
फिर पूछते हैं आप से हम कौन हम कि आप

दिल हुस्न पर निसार तो कर दूँ बजा दुरुस्त
झेलेगा इस के ब'अद सितम कौन हम कि आप

दुनिया से उठ चुका था मोहब्बत का ए'तिबार
क़ाएम किए हुए है भरम कौन हम कि आप

दोनों ने इत्तिहाद की कोशिश ज़रूर की
लेकिन रहा निबाह में कम कौन हम कि आप

रोज़-ए-जज़ा जो दाद-तलब होंगे दाद-ख़्वाह
उस दिन करेगा उज़्र-ए-सितम कौन हम कि आप

तूफ़ान-ए-अश्क-ए-'नूह' का रुकना मुहाल है
अंजाम दे ये कार-ए-अहम कौन हम कि आप