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आलम उस बुत पे मुब्तला ही रहा | शाही शायरी
aalam us but pe mubtala hi raha

ग़ज़ल

आलम उस बुत पे मुब्तला ही रहा

लाला टीका राम

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आलम उस बुत पे मुब्तला ही रहा
उन में फ़िदवी भी इक फ़िदा ही रहा

उठ गई दोस्ती ज़माने से
आश्नाई न आश्ना ही रहा

न सुनी तू ने एक बात कभू
हम को इस बात का गिला ही रहा

तुम ख़फ़ा ही रहे 'तसल्ली' से
और वो तुम पे नित फ़िदा ही रहा