आलम-ए-वज्द से इक़रार में आता हुआ मैं 
क़िस्सा-ए-दर्द बना ख़्वाब सुनाता हुआ मैं 
मंसब-ए-दार पे आया हूँ बड़ी शान के साथ 
हाकिम-ए-शहर तिरे होश उड़ाता हुआ मैं 
ज़िंदगी हिज्र है और हिज्र भी ऐसा है कि बस 
साँस तक हार चुका वस्ल कमाता हुआ मैं 
चाँदनी रात में दरिया सी रवाँ याद के साथ 
कैफ़ ओ मस्ती में चला झूमता गाता हुआ मैं 
यार देखो तो कभी मौसम-ए-हिज्राँ में इधर 
ख़ाक होता हूँ यहाँ दश्त सजाता हुआ मैं 
शाख़-ए-इम्काँ से तिरी याद की महकार चुनूँ 
एक भँवरा सा तिरी ओर को जाता हुआ मैं 
हल्क़ा-ए-शेर से गुज़रूँगा मोहब्बत में 'सईद' 
दिल के जज़्बात को अल्फ़ाज़ में लाता हुआ मैं
        ग़ज़ल
आलम-ए-वज्द से इक़रार में आता हुआ मैं
मुबश्शिर सईद

