आलम-ए-आब-ओ-ख़ाक-ओ-बाद सिर्र-ए-अयाँ है तू कि मैं
वो जो नज़र से है निहाँ उस का जहाँ है तू कि मैं
वो शब-ए-दर्द-ओ-सोज़-ओ-ग़म कहते हैं ज़िंदगी जिसे
उस की सहर है तू कि मैं उस की अज़ाँ है तू कि मैं
किस की नुमूद के लिए शाम ओ सहर हैं गर्म-ए-सैर
शाना-ए-रोज़गार पर बार-ए-गिराँ है तू कि मैं
तू कफ़-ए-ख़ाक ओ बे-बसर मैं कफ़-ए-ख़ाक ओ ख़ुद-निगर
किश्त-ए-वजूद के लिए आब-ए-रवाँ है तू कि मैं
ग़ज़ल
आलम-ए-आब-ओ-ख़ाक-ओ-बाद सिर्र-ए-अयाँ है तू कि मैं
अल्लामा इक़बाल