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आख़िरी वक़्त तिरी राह से हट जाएँगे | शाही शायरी
aaKHiri waqt teri rah se haT jaenge

ग़ज़ल

आख़िरी वक़्त तिरी राह से हट जाएँगे

राहुल झा

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आख़िरी वक़्त तिरी राह से हट जाएँगे
तू अगर हो गया राज़ी तो पलट जाएँगे

तेरी नज़रों के तक़ाज़ों को तो सह लेंगे मगर
हम तिरे लम्स की शमशीर से कट जाएँगे

लौटते वक़्त वो माँगेगा ख़ुशी से रुख़्सत
और हम रोते हुए उस से लिपट जाएँगे