आख़िरी वक़्त तिरी राह से हट जाएँगे
तू अगर हो गया राज़ी तो पलट जाएँगे
तेरी नज़रों के तक़ाज़ों को तो सह लेंगे मगर
हम तिरे लम्स की शमशीर से कट जाएँगे
लौटते वक़्त वो माँगेगा ख़ुशी से रुख़्सत
और हम रोते हुए उस से लिपट जाएँगे
ग़ज़ल
आख़िरी वक़्त तिरी राह से हट जाएँगे
राहुल झा