आख़िरी बार आह कर ली है
मैं ने ख़ुद से निबाह कर ली है
अपने सर इक बला तो लेनी थी
मैं ने वो ज़ुल्फ़ अपने सर ली है
दिन भला किस तरह गुज़ारोगे
वस्ल की शब भी अब गुज़र ली है
जाँ-निसारों पे वार क्या करना
मैं ने बस हाथ में सिपर ली है
जो भी माँगो उधार दूँगा मैं
उस गली में दुकान कर ली है
मेरा कश्कोल कब से ख़ाली था
मैं ने इस में शराब भर ली है
और तो कुछ नहीं किया मैं ने
अपनी हालत तबाह कर ली है
शैख़ आया था मोहतसिब को लिए
मैं ने भी उन की वो ख़बर ली है
ग़ज़ल
आख़िरी बार आह कर ली है
जौन एलिया