आख़िर को राह-ए-इश्क़ में हम सर के बल गए
मुश्किल में हाथ पाँव हमारे निकल गए
किस किस को याद कर के कोई रोए ऐ फ़लक
आँखों के आगे लाख ज़माने बदल गए
उश्शाक-ए-लखनऊ की कशिश देख ऐ मसीह
लंदन के ख़ूब-रू भी फ़रंगी-महल गए
अपना सुराग़ पूछते फिरते हैं मौत से
आफ़त-ज़दों के हिज्र में नक़्शे बदल गए
बदलो रदीफ़ और पढ़ो शेर ऐ 'मुनीर'
क्या फ़ाएदा जो उस के क़्वाफ़ी बदल गए
ग़ज़ल
आख़िर को राह-ए-इश्क़ में हम सर के बल गए
मुनीर शिकोहाबादी