आख़िर ख़ुद अपने ही लहू में डूब के सर्फ़-ए-विग़ा होगे
क़दम क़दम पर जंग लड़ी है कहाँ कहाँ बरपा होगे
हाल का लम्हा पत्थर ठहरा यूँ भी कहाँ गुज़रता है
हाथ मिला कर जाने वालो दिल से कहाँ जुदा होगे
मौजों पर लहराते तिन्को चलो न यूँ इतरा के चलो
और ज़रा ये दरिया उतरा तुम भी लब-ए-दरिया होगे
सोचो खोज मिला है किस को राह बदलते तारों का
इस वहशत में चलते चलते आप सितारा सा होगे
सीने पर जब हर्फ़-ए-तमन्ना दर्द की सूरत उतरेगा
ख़ुदी आँख से टपकोगे और ख़ुद ही दस्त-ए-दुआ होगे
सूखे पेड़ों की सब लाशें ग़र्क़ कफ़-ए-सैलाब में हैं
क़हत-ए-आब से मरते लोगो बोलो अब क्या चाहोगे
बात ये है इस बाग़ में फूल से पत्ता होना अच्छा है
रंग और ख़ुशबू बाँटोगे तो पहले रिज़्क़-ए-हवा होगे
ऐ मेरे ना-गुफ़्ता शे'रो ये तो बताओ मेरे बा'द
कौन से दिल में क़रार करोगे किस के लब से अदा होगे
ग़ज़ल
आख़िर ख़ुद अपने ही लहू में डूब के सर्फ़-ए-विग़ा होगे
तौसीफ़ तबस्सुम