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आख़िर इक दिन सब को मरना होता है | शाही शायरी
aaKHir ek din sab ko marna hota hai

ग़ज़ल

आख़िर इक दिन सब को मरना होता है

इमरान आमी

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आख़िर इक दिन सब को मरना होता है
यानी मिस्रा पूरा करना होता है

मैं दरिया की गहराई तक जाता हूँ
मैं ने कौन सा पार उतरना होता है

अपने आँसू आप ही रोना होते हैं
अपना घाव आप ही भरना होता है

इस सहरा को पंछी पूजने आते हैं
जिस सहरा के दिल में झरना होता है

हम तो ज़मीं पर रेंगने वाले कीड़े हैं
हम ने कब हिजरत से डरना होता है

उड़ने वाले कैसे भूल गए 'आमी'
पाँव आख़िर ख़ाक पे धरना होता है