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आख़िर एक दिन शाद करोगे | शाही शायरी
aaKHir ek din shad karoge

ग़ज़ल

आख़िर एक दिन शाद करोगे

हफ़ीज़ जालंधरी

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आख़िर एक दिन शाद करोगे
मेरा घर आबाद करोगे

प्यार की बातें वस्ल की रातें
याद करोगे याद करोगे

किस दिल से आबाद किया था
किस दिल से बर्बाद करोगे

मैं ने अपनी क़ीमत कह दी
तुम भी कुछ इरशाद करोगे

ज़र के बंदो अक़्ल के अंधो
तुम क्या मुझ को शाद करोगे

जब मुझ को चुप लग जाएगी
फिर तुम भी फ़रियाद करोगे

और तुम्हें आता ही क्या है
कोई सितम ईजाद करोगे

तंग आ कर ऐ बंदा-परवर
बंदे को आज़ाद करोगे

मेरे दिल में बसने वालो
तुम मुझ को बर्बाद करोगे

हुस्न को रुस्वा कर के मरूँगा
आख़िर तुम क्या याद करोगे

हश्र के दिन उम्मीद है नासेह
तुम मेरी इमदाद करोगे