आज उन्हें कुछ इस तरह जी खोल कर देखा किए
एक ही लम्हे में जैसे उम्र-भर देखा किए
दिल अगर बेताब है दिल का मुक़द्दर है यही
जिस क़दर थी हम को तौफ़ीक़-ए-नज़र देखा किए
ख़ुद-फ़रोशाना अदा थी मेरी सूरत देखना
अपने ही जल्वे ब-अंदाज़-ए-दिगर देखा किए
ना-शनास-ए-ग़म फ़क़त दाद-ए-हुनर देते रहे
हम मता-ए-ग़म को रुस्वा-ए-हुनर देखा किए
देखने का अब ये आलम है कोई हो या न हो
हम जिधर देखा किए पहरों उधर देखा किए
हुस्न को देखा है मैं ने हुस्न की ख़ातिर 'हफ़ीज़'
वर्ना सब अपना ही मेयार-ए-नज़र देखा किए
ग़ज़ल
आज उन्हें कुछ इस तरह जी खोल कर देखा किए
हफ़ीज़ होशियारपुरी