आज तो उस ने यूँ देखा है
जैसे मुझ को भूल गया है
कलियाँ खुल कर फूल बनी हैं
किस का आँचल लहराया है
उन को अब मेरे ग़म का
शायद कुछ एहसास हुआ है
सामने उन के खोया खोया
सोच रहा हूँ क्या कहना है
रुख़ पे बहारें झूम रही हैं
आँख में नश्शा डोल रहा है
अरमानों के ख़ून से मैं ने
माँग में तेरी रंग भरा है
'नक़्श' ग़ज़ल ये किस ने छेड़ी
ज़र्रा ज़र्रा झूम रहा है
ग़ज़ल
आज तो उस ने यूँ देखा है
महेश चंद्र नक़्श