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आज तो नहीं मिलता ओर-छोर दरिया का | शाही शायरी
aaj to nahin milta or-chhor dariya ka

ग़ज़ल

आज तो नहीं मिलता ओर-छोर दरिया का

सलीम अहमद

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आज तो नहीं मिलता ओर-छोर दरिया का
तू भी आ के साहिल पर देख ज़ोर दरिया का

मेरा शोर-ए-ग़र्क़ाबी ख़त्म हो गया आख़िर
और रह गया बाक़ी सिर्फ़ शोर दरिया का

मेरे जुर्म-ए-सादा पर तिश्नगी भी हँसती है
एक घूँट पानी पर मैं हूँ चोर दरिया का

मोर और भँवर दोनों महव-ए-रक़्स रहते हैं
ये भँवर है जंगल का वो है मोर दरिया का