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आज फिर साक़ी-ए-गुलफ़ाम से बातें होंगी | शाही शायरी
aaj phir saqi-e-gulfam se baaten hongi

ग़ज़ल

आज फिर साक़ी-ए-गुलफ़ाम से बातें होंगी

रघुनाथ सहाय

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आज फिर साक़ी-ए-गुलफ़ाम से बातें होंगी
मय-गुसारों की मय-ओ-जाम से बातें होंगी

फिर तिरे आरिज़-ओ-गेसू के नज़ारे होंगे
फिर नई सुब्ह नई शाम से बातें होंगी

हो चुकीं ऐश-ओ-मसर्रत से बहुत कुछ बातें
होंगी अब तो ग़म-ओ-आलाम से बातें होंगी

उम्र-भर खाएँगे हम वादा-ए-फ़र्दा का फ़रेब
उम्र-भर हसरत-ए-नाकाम से बातें होंगी

होगी ख़ल्वत में भी हाइल न ख़मोशी मुझ को
नक़्श-ए-दीवार-ओ--दर-ओ--बाम से बातें होंगी

गर्दिश-ए-जाम से लब होंगे मिरे महव-ए-कलाम
जब मिरी गर्दिश-ए-अय्याम से बातें होंगी

मुर्ग़-ए-दिल ज़ौक़-ए-असीरी पे है माइल 'उम्मीद'
किस की ज़ुल्फ़ों के हसीं दाम से बातें होंगी