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आज फिर रू-ब-रू करोगे तुम | शाही शायरी
aaj phir ru-ba-ru karoge tum

ग़ज़ल

आज फिर रू-ब-रू करोगे तुम

शाहिद कमाल

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आज फिर रू-ब-रू करोगे तुम
मुझ से क्या गुफ़्तुगू करोगे तुम

मुझ से लोगे मिरे लहू क़िसास
फिर मुझे सुर्ख़-रू करोगे तुम

हैफ़ हो मेरी बद-मिज़ाजी पर
आप अपना लहू करोगे तुम

तुम गँवा दोगे एक दिन मुझ को
फिर मिरी जुस्तुजू करोगे तुम

तुम सफ़-ए-दोस्ताँ में हो लेकिन
फिर भी कार-ए-अदू करोगे तुम

ज़ख़्म पर ज़ख़्म खाए जाते हो
और रफ़ू पर रफ़ू करोगे तुम

हम भी मक़्तल में सर कटाएँगे
अपने ख़ूँ से वुज़ू करोगे तुम

ऐ मिरी जान ऐब है ये भी
हम को मैं तुम को तू करोगे तुम

मैं तो 'शाहिद' भी हूँ 'कमाल' भी हूँ
मेरे हक़ में ग़ुलू करोगे तुम