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आज मैं ने उसे नज़दीक से जा देखा है | शाही शायरी
aaj maine use nazdik se ja dekha hai

ग़ज़ल

आज मैं ने उसे नज़दीक से जा देखा है

कफ़ील आज़र अमरोहवी

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आज मैं ने उसे नज़दीक से जा देखा है
वो दरीचा तो मिरे क़द से बहुत ऊँचा है

अपने कमरे को अँधेरों से भरा पाया है
तेरे बारे में कभी ग़ौर से जब सोचा है

हर तमन्ना को रिवायत की तरह तोड़ा है
तब कहीं जा के ज़माना मुझे रास आया है

तुम को शिकवा है मिरे अहद-ए-मोहब्बत से मगर
तुम ने पानी पे कोई लफ़्ज़ कभी लिक्खा है

ऐसा बिछड़ा कि मिला ही नहीं फिर उस का पता
हाए वो शख़्स जो अक्सर मुझे याद आता है

कोई उस शख़्स को अपना नहीं कहता 'आज़र'
अपने घर में भी वो ग़ैरों की तरह रहता है