आज महफ़िल में नए सर से सँवर आएँगे
उन को मालूम है कुछ अहल-ए-नज़र आएँगे
रू-ब-रू यार के गर बार-ए-दिगर जाएँगे
कर के हम एक बड़ा म'अरका सर आएँगे
ये तो धमकी है कि वो ग़ैर के घर जाएँगे
हम-नशीं देखना हिर-फिर के इधर आएँगे
सब्र करने को जो कहते हैं नहीं आते हैं
क्या मिरे ज़ख़्म-ए-जिगर आप ही भर आएँगे
कौन उमीद आप से पूरी होगी
कौन अरमान मेरे आप से बर आएँगे
लाख पर्दों में रहें मुझ से निहाँ रोज़-ब-रोज़
ख़्वाब में वो मुझे हर शब को नज़र आएँगे
दर से फिर उस बुत-ए-पुर-फ़न के हमारे नाले
साफ़ ज़ाहिर है कि मायूस-ए-असर आएँगे
चश्म-ए-बीना से जो देखेंगे मिरा पर्दा-ए-दिल
ऐ मसीहा कई नासूर नज़र आएँगे
कोई कह दो कि बस अब और तवक़्क़ुफ़ न करें
वर्ना हम जी से गुज़रने पे उतर आएँगे
ना-तवानी से हमारी तुझे क्या तेरा सँभाल
हम तिरे सामने फिर सीना-सिपर आएँगे
आज़माएँगे ग़म-ए-हिज्र का इक और इलाज
कर के सहरा में कुछ अय्याम बसर आएँगे
रहबरी ख़ाक रह-ए-इश्क़ में इन से होगी
दिल अगर हज़रत-ए-'रहबर' कहीं धर आएँगे

ग़ज़ल
आज महफ़िल में नए सर से सँवर आएँगे
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर