आज कुछ कहने को थी शोख़ी-ए-तदबीर मिरी
हँस पड़ी पास खड़ी थी कहीं तक़दीर मिरी
टूटते ही से हुई दिल में कशाकश पैदा
मेरी तख़रीब में पोशीदा थी ता'मीर मिरी
हुर्रियत ज़ुल्मत-ए-ज़िंदाँ में जनम लेती है
इन्क़िलाबात की तारीख़ है ज़ंजीर मिरी
अपनी जानिब कभी देखा ही नहीं था वर्ना
वुसअ'तें दोनों जहानों की हैं जागीर मिरी
दोस्ती कैसी रह-ओ-रस्म-ए-उमूमी भी गई
प्यार की बात कही आप से तक़्सीर मिरी
मैं कहाँ आप कहाँ दीद की उम्मीद कहाँ
याद आऊँ जो कभी देखिए तस्वीर मिरी
इबरत-आमोज़ है दुनिया का तग़य्युर 'जामी'
मुझ से मिलती नहीं दो रोज़ की तस्वीर मिरी

ग़ज़ल
आज कुछ कहने को थी शोख़ी-ए-तदबीर मिरी
जामी रुदौलवी