EN اردو
आज की तन्हाई से निकलो कल की आबादी में आओ | शाही शायरी
aaj ki tanhai se niklo kal ki aabaadi mein aao

ग़ज़ल

आज की तन्हाई से निकलो कल की आबादी में आओ

ज़हीर काश्मीरी

;

आज की तन्हाई से निकलो कल की आबादी में आओ
जानाँ की तुर्बत से उट्ठो दौराँ को सीने से लगाओ

ख़ूब नहीं ये तर्ज़-ए-तकल्लुफ़ आज तआरुफ़ हो जाने दो
मैं भी अपने सर को झुकाऊं तुम भी अपनी तेग़ उठाओ

टेढ़ी नर्दें उल्टे ख़ाने मद्द-ए-मुक़ाबिल बे-उस्लूब
ये चौसर का खेल भी क्या है चाल चलो तो मुँह की खाओ

तुम ही क़ातिल तुम ही मुंसिफ़ फिर भी मुझे अफ़्सोस नहीं
आख़िर मेरे दिल में क्या है बूझ सको तो बात बताओ

दिल का वीराना भी वही है तेरी तमन्ना भी है वही
ज़ुल्मत में रौशन है सितारा सहरा में जलता है अलाव