आज की शब जैसे भी हो मुमकिन जागते रहना
कोई नहीं है जान का ज़ामिन जागते रहना
क़ज़्ज़ाक़ों के दश्त में जब तक क़ाफ़िला ठहरे
क़ाफ़िले वालो रात हो या दिन जागते रहना
तारीकी में लिपटी हुई पुर-हौल ख़मोशी
इस आलम में क्या नहीं मुमकिन जागते रहना
आहट आहट पर जाने क्यूँ दिल धड़के है
कोई नहीं अतराफ़ में लेकिन जागते रहना
ठंडी हवाओं का ऐ दिल एहसाँ न उठाना
कोई यहाँ हमदर्द न मोहसिन जागते रहना
राह-नुमा सब दोस्त हैं लेकिन ऐ हम-सफ़रो
दोस्त का क्या ज़ाहिर क्या बातिन जागते रहना
तारों की आँखें भी बोझल बोझल सी हैं
कोई नहीं अब 'शाइर' तुझ-बिन जागते रहना
ग़ज़ल
आज की शब जैसे भी हो मुमकिन जागते रहना
हिमायत अली शाएर