आज ख़ुद को तबाह कर लेंगे
ज़िंदगानी सियाह कर लेंगे
तुम न मिल पाए तो गिला क्या है
याद ही से निबाह कर लेंगे
खोल कर सारे बंद दरवाज़े
आप के दिल में राह कर लेंगे
कब ये मालूम था हसीं चेहरे
सब के दिल को सियाह कर लेंगे
ज़िंदगी भर अगर नहीं मिलते
हम तो यूँ भी निबाह कर लेंगे
सारी दुनिया से फेर कर नज़रें
उन की जानिब निगाह कर लेंगे
गर मोहब्बत गुनाह है 'तरुणा'
एक ये भी गुनाह कर लेंगे
ग़ज़ल
आज ख़ुद को तबाह कर लेंगे
तरुणा मिश्रा