आज जी में है कि खुल कर मय-परस्ती कीजिए
ख़ूब सी मय पीजिए और देर मस्ती कीजिए
ज़ोहद-ए-ख़ुश्क आख़िर कहाँ तक माया-ए-तर-दामनी
ग़र्क़ लाए मय भी चंदे रख़्त-ए-हस्ती कीजिए
तंग-तर है दस्त-ए-हाजत से दिल अबना-ए-दहर
किस के आगे ज़ाहिर अपनी तंग-दस्ती कीजिए
दरपए-वीरानी-ए-दिल है जो बस्ता है यहाँ
किस तरह या-रब इस ऊजड़ घर को बस्ती कीजिए
लब पे फ़व्वारे के जारी है ये मिस्रा दम-ब-दम
दे अगर ख़ालिक़ बुलंदी मैल-ए-पस्ती कीजिए
मुफ़्त तक दूँ हूँ मैं दिल तिस पर कोई लेता नहीं
हाँ मगर इस से भी कुछ ये जिंस सस्ती कीजिए
टुक गरेबाँ आज फट कर धज्जिएँ हो ले तो फिर
चाक पर सीने के 'क़ाएम' पेश-दस्ती कीजिए
ग़ज़ल
आज जी में है कि खुल कर मय-परस्ती कीजिए
क़ाएम चाँदपुरी