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आज गुज़रे हुए लम्हों को पुकारा जाए | शाही शायरी
aaj guzre hue lamhon ko pukara jae

ग़ज़ल

आज गुज़रे हुए लम्हों को पुकारा जाए

सबा जायसी

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आज गुज़रे हुए लम्हों को पुकारा जाए
दिल को फिर ख़ून-ए-तमन्ना से सँवारा जाए

मेरा हर शौक़ भी हो उन का हर अंदाज़ भी हो
दिल में अब नक़्श कोई ऐसा उतारा जाए

जब थकी-मांदी पड़ी सोती हो हर शोरिश-ए-ग़म
हिज्र की रात को किस तरह गुज़ारा जाए

कुछ हो मे'यार-ए-ख़िरद चाक-ए-क़बा ऐब सही
चश्म-ए-मा'सूम का ख़ाली न इशारा जाए

आबला-पा है तो क्या है तू वो सरगर्म-ए-सफ़र
क़ाफ़िले वालो 'सबा' को तो पुकारा जाए