आज गुम-गश्ता ख़यालात ने चौंकाया है
फिर कोई दश्त-ए-जुनूँ से मुझे ले आया है
ज़ेहन-ए-आवारा ने एहसास को राहें दे कर
मंज़िल-ए-दार-ओ-रसन तक मुझे पहुँचाया है
ख़ौफ़ ने लूट ली हर गाम पे नब्ज़ों की असास
दर-ब-दर रूह की गलियों में मिरा साया है
हौसले आज भी मीरास हैं मेरे दिल के
मैं ने हर-गाम पे तूफ़ान को पलटाया है
बे-ख़तर कौन चला जानिब-ए-मंज़िल 'मंज़र'
किस का लहजा है जो माहौल से टकराया है
ग़ज़ल
आज गुम-गश्ता ख़यालात ने चौंकाया है
जावेद मंज़र