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आज अचानक फिर ये कैसी ख़ुशबू फैली यादों की | शाही शायरी
aaj achanak phir ye kaisi KHushbu phaili yaadon ki

ग़ज़ल

आज अचानक फिर ये कैसी ख़ुशबू फैली यादों की

उनवान चिश्ती

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आज अचानक फिर ये कैसी ख़ुशबू फैली यादों की
दिल को आदत छूट चुकी थी मुद्दत से फ़रियादों की

दीवानों का भेस बना लें या सूरत शहज़ादों की
दूर से पहचानी जाती है शक्ल तिरे बर्बादों की

शर्त-ए-शीरीं क्या पूरी हो तेशा-ओ-जुरअत कुछ भी नहीं
इश्क़ ओ हवस के मोड़ पे यूँ तो भीड़ है इक फ़रहादों की

अब भी तिरे कूचे में हवाएँ ख़ाक उड़ाती फिरती हैं
बाक़ी है ये एक रिवायत अब भी तिरे बर्बादों की

कोई तिरी तस्वीर बना कर ला न सका ख़ून-ए-दिल से
लगती है हर रोज़ नुमाइश यूँ तो नए बहज़ादों की