आइए रो लें कहीं रोने से चैन आ जाएगा
वर्ना दर्द-ए-दिल भरी महफ़िल में पकड़ा जाएगा
चाँद की चाहत है लेकिन चाँद को कम देखिए
वर्ना जब आँखों में बस जाएगा गहना जाएगा
जुम्बिश-ए-मौज-ए-सबा से भी अगर लब हिल गए
बात पकड़ी जाएगी महशर उठाया जाएगा
सर्दियों की ओस में ठिठुरा हुआ इक अजनबी
कल तिरी दीवार के साए में पाया जाएगा
दीद की मोहलत तो मिलती है मगर क्या देखिए
आँख बुझ जाएगी आख़िर फूल कुम्हला जाएगा
ऐ सबा फ़ुर्सत नहीं ख़ाकिस्तर-ए-दिल से न खेल
हम अगर रोए तो फिर ता-देर रोया जाएगा
ग़ज़ल
आइए रो लें कहीं रोने से चैन आ जाएगा
ख़ुर्शीद रिज़वी