आइए जल्वा-ए-दीदार के दिखलाने को
फूँक दे बर्क़-ए-तजल्ली मिरे काशाने को
देखिए कौन सी जा यार का मिलता है पता
कोई का'बे को चला है कोई बुत-ख़ाने को
तेरी फ़ुर्क़त में तसव्वुर है ये बेदर्दी का
ख़्वाब हम जानते हैं नींद के आ जाने को
बा'द मेरे जो हुआ दश्त में मजनूँ का गुज़र
रो दिया देख के ख़ाली मिरे वीराने को
काम आ जाती है हम-बज़्मी भी रौशन दिल की
शम्अ' हम-रंग बना लेती है परवाने को
आज फिर शहर के कूचे नज़र आते हैं उदास
किस तरफ़ ले गई वहशत तिरे दीवाने को
ऐ जुनूँ तंग हुई वुसअ'त-ए-सहरा तुझ से
अब कहाँ जाए तबीअ'त कोई बहलाने को
गुल पे बुलबुल था कहीं शम्अ' पे परवाना था
हम ने हर रंग में देखा तिरे परवाने को
वा-शुद-ए-दिल न हुई ग़ुंचा-ए-ख़ातिर न खिला
कौन से बाग़ में आए थे हवा खाने को
मैं ने जब वादी-ए-ग़ुर्बत में क़दम रक्खा था
दूर तक याद-ए-वतन आई थी समझाने को
ग़ज़ल
आइए जल्वा-ए-दीदार के दिखलाने को
वहीद इलाहाबादी