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आइनों से पहले भी रस्म-ए-ख़ुद-नुमाई थी | शाही शायरी
aainon se pahle bhi rasm-e-KHud-numai thi

ग़ज़ल

आइनों से पहले भी रस्म-ए-ख़ुद-नुमाई थी

हसन नज्मी सिकन्दरपुरी

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आइनों से पहले भी रस्म-ए-ख़ुद-नुमाई थी
दिल शिकार होते थे ऐसी दिलरुबाई थी

फूल फूल बाम-ओ-दर रास्ते हैं गुल-पैकर
वो उधर से गुज़रे थे या बहार आई थी

पास का मुसाफ़िर क्यूँ उठ के दूर जा बैठा
नाम पूछ लेने में ऐसी क्या बुराई थी

कुछ शफ़क़ शफ़क़ आरिज़ कुछ उफ़ुक़ उफ़ुक़ चेहरे
आरज़ू ने बज़्म अपनी रात यूँ सजाई थी

कितना मोहतरम था मैं भूलता नहीं 'नजमी'
भूक भी मिरे घर में सर झुका के आई थी